एक ऐसा मंदिर जहां आज भी दी जाती है पशुओं की बलि:Kamkhya temple
गुवाहाटी: जी हां आपने बिलकुल सही पढ़ा भारत देश में एक तरफ जहां अंधविश्वास और कुरीतियों के विरुद्ध लोगों को जागरूक किया जा रहा है वही आज भी देश में कई जगहों पर लोगों का एक बड़ा कुनबा अंधविश्वास की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है।
ऐसा ही एक मंदिर असम की नीलांचल पहाड़ियों में बसा हुआ है। इस मंदिर का नाम है-कामख्या देवी मंदिर। जो की 51 शक्तिपीठों में से एक है जहां आज भी पशु- पंछियों की बलि दी जाती है। देश विदेश के तांत्रिक, अघोरी यहां अपने मंत्रों की सिद्धि के लिए आते हैं। यहां तंत्र-मंत्र, जादू-टोना, साधना हर तरह की तांत्रिक क्रियाएं होती हैं। यह शक्तिपीठ तंत्र सिद्धि के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है।
51 शक्तिपीठों में सबसे शक्तिशाली कामख्या देवी का मंदिर असम के कामरूप जिले में, गुवाहाटी शहर के नजदीक, नीलांचल पहाड़ियों में स्थित है। यह मंदिर अपने आप में बहुत महत्व रखता है। इस मंदिर के विषय में कालिका पुराण में लिखा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि देवी सती (भगवान शिव की पत्नी) के पिता दक्ष प्रजापति द्वारा एक बार यज्ञ किया गया जिसमे शिव जी को छोड़कर सभी देवी देवताओं को निमंत्रित किया गया। निमंत्रित न होने के बावजूद देवी सती उस यज्ञ पूजन में सम्मिलित हुईं। वहां पर राजा दक्ष प्रजापति द्वारा शिव जी को उनकी पत्नी सती के सामने खूब अपमानित किया गया। जिससे बिमुख होकर देवी सती जलते हवन कुंड में कूद गईं। यह बात जब शिव जी को पता चली तो वह अत्यंत क्रोधित होते हुए यज्ञ स्थान पर पहुंचे और माता सती के शरीर को उठाकर चारों दिशाओं में घूम घूमकर तांडव करने लगे। उन्हें रोकपाना सभी देवताओं के लिए मुश्किल लग रहा था। तब सबकी विनती से भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र छोड़ा जिससे माता सती के शरीर के कई टुकड़े हो गए। ये टुकड़े जहां-जहां गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ बन गया। कामख्या देवी में माता का योनि भाग गिरा था।
कामख्या नाम के बारे में कहा जाता है कि इसी स्थान पर शिव जी और देवी सती के बीच प्रेम (काम) शुरू हुआ था। इसलिए इस स्थान को कामख्या कहा जाता है।
मान्यताएं
कामख्या शक्तिपीठ में माता की कोई मूर्ति नही है यहां माता के योनि की पूजा की जाती है। इस मंदिर में तरह तरह की मान्यताएं है। इस मंदिर का अंबुबाची पर्व जग प्रसिद्ध है। यह पर्व हर साल जून के महीने में होता है। ऐसा माना जाता है कि अंबुबाची पर्व(यह पर्व हर साल 22 से 26 जून तक होता है) के दौरान माता तीन दिन के लिए रजस्वला(आम भाषा में मासिक धर्म) होती हैं। इस दौरान मंदिर के कपाट को आम जनता के लिए बंद कर दिया जाता है। तीन दिन के बाद मंदिर को खोला जाता है। इस पर्व में भक्तों की बहुत ज्यादा भीड़ होती है। दूर दूर से अघोरी तथा तांत्रिक अपने मंत्रों की सिद्धि के लिए आते हैं। भक्तो को प्रसाद के रूप में लाल कपड़ा दिया जाता हैं कहते हैं की यह कपड़ा माता के रक्त से लाल होता है। मान्यता है कि यहां पर जो भी भक्त मन से आते है माता उनकी मुरादें अवश्य पूरी करती हैं। कामख्या मंदिर के पास ब्रह्मापुत्र नदी में भैरव बाबा का उमानंदा मन्दिर है। भक्त कामाख्या देवी का दर्शन के साथ उमानन्दा मंदिर में शिव जी का भी दर्शन जरूर करते हैं।
पशुओं की बलि
इस शक्तिपीठ में अपनी मुरादें पूरी करने के लिए पशुओं की बलि दी जाती है। कई लोग पशुओं की जगह कबूतरों की भी बलि देते हैं।
कैसे पहुंचे
कामख्या शक्तिपीठ गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से लगभग 8 किमी की दूरी पर स्थित है। रेलवे स्टेशन से ऑटो तथा कैब बुक करके आप सीधे मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
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ReplyDeletevery gud place to visit .. nice content
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